Yudhra Movie Review: एक्शन से भरपूर, लेकिन कहानी में कहां रह गई कमी?
कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें देखने के बाद आपके दिमाग में सबसे पहला सवाल आता है, “इस फिल्म को आखिरकार क्यों बनाया गया?” युद्रा फिल्म देखने के बाद भी यही सवाल उठता है।
सिद्धांत चतुर्वेदी, जिन्हें आपने “गली बॉय” में नोटिस किया होगा, अब इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म एक फुल-ऑन एक्शन थ्रिलर है, जो सिद्धांत के लीड रोल में होने के बावजूद दर्शकों को आकर्षित करने में असफल रही है।
सिद्धांत चतुर्वेदी की भूमिका और फिल्म का विषय
सिद्धांत चतुर्वेदी का करियर “गली बॉय” के बाद से तेजी से बढ़ा, और वे इंडस्ट्री में एक प्रमुख अभिनेता बन गए। लेकिन “युद्रा” में उनकी भूमिका ने दर्शकों को वह एक्साइटमेंट नहीं दी, जो उनसे उम्मीद की गई थी।
इस फिल्म का मुख्य किरदार युद्रा, एक गुस्सैल और सनकी इंसान है, जो किसी की नहीं सुनता। इस तरह का किरदार एक अच्छी एक्शन थ्रिलर में जान डाल सकता है, लेकिन यहां एग्ज़ीक्यूशन में बड़ी कमी रह गई।
युद्रा का किरदार इतना सनकी है कि वह कभी गुस्से में किसी पर हमला कर देता है, तो कभी खुद को चोट पहुंचा लेता है। उसके मूवमेंट्स और एक्शन सीक्वेंस फिल्म में बार-बार दोहराए जाते हैं,
जिससे फिल्म की रोचकता कम होती जाती है। एक्शन सीक्वेंस भी कहीं न कहीं दर्शकों को पहले देखी गई कई फिल्मों की याद दिलाते हैं, जिससे यह फिल्म कुछ नया पेश नहीं कर पाई।
फिल्म का एग्जीक्यूशन और प्लॉट की असफलता
एक फिल्म की सफलता का सबसे बड़ा कारण होता है उसकी कहानी और एग्जीक्यूशन। “युद्रा” में कहानी का एग्जीक्यूशन इतना कमज़ोर था कि कई सीन अनरिमार्केबल और बेवजह लगे।
फिल्म में एक बड़े विलेन की कहानी है, जिसे युद्रा हराकर जीत हासिल करता है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में नयापन और थ्रिलिंग फैक्टर की कमी साफ दिखाई देती है।
प्लॉट के विकास के दौरान बहुत से ऐसे पल आते हैं, जब फिल्म अपने दर्शकों को जोड़ने में विफल होती है। सीन दर सीन यह महसूस होता है कि कहानी बस खींची जा रही है, जबकि इसमें कोई नया या रोमांचक तत्व नहीं जोड़ा जा रहा।
फिल्म में कई क्लासिक ट्रॉप्स हैं, जैसे किसी का धोखा देना, अचानक ट्विस्ट का आना, और अंत में एक बड़ा क्लाइमेक्स। लेकिन इन सभी एलिमेंट्स को इतना घिसा-पिटा तरीके से पेश किया गया है कि दर्शक बोरियत महसूस करने लगते हैं।
फिल्म की कमजोर रोमांटिक केमिस्ट्री
फिल्म का एक और बड़ा फ्लॉप हिस्सा है, हीरो और हीरोइन के बीच की केमिस्ट्री। रोमांटिक सीन में एक अच्छी फिल्म वही होती है, जहां दोनों मुख्य किरदारों के बीच की केमिस्ट्री दर्शकों को छू जाती है। लेकिन “युद्रा” में रोमांस का हिस्सा इतना कमजोर और जबरदस्ती डाला हुआ लगता है कि दर्शकों को इससे कोई कनेक्शन महसूस नहीं होता।
एक्शन सीक्वेंस: फिल्म की एकमात्र हाइलाइट
फिल्म का एकमात्र प्लस पॉइंट है इसके एक्शन सीक्वेंस। हालांकि फिल्म की कहानी में कोई खास नयापन नहीं था, लेकिन इसके एक्शन सीक्वेंस ने इसे थोड़ा बहुत देखने लायक बनाया।
युद्रा का क्लोज क्वार्टर कॉम्बैट (हाथ-मुक्का लड़ाई) और दूसरे मार-धाड़ वाले सीक्वेंस काफी अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं। एक्शन के दौरान फिल्म की एनर्जी लेवल ऊंची रहती है, जिससे दर्शकों का ध्यान बनाए रखना थोड़ा आसान हो जाता है।
फिल्म में जब भी एक्शन सीन आते हैं, सिद्धांत चतुर्वेदी का परफॉर्मेंस काबिल-ए-तारीफ रहता है। उनका बॉडी लैंग्वेज, एनर्जी और एक्शन के दौरान का परफॉर्मेंस काफ़ी प्रभावशाली है। खासतौर पर जब वे विलेन के गुंडों से लड़ते हैं, तो उनके मारने-पीटने के अंदाज़ में एक अलग ही फील आता है।
फिल्म में ड्रामा और गाने: पूरी तरह से मिसफिट
जहां एक्शन सीक्वेंस फिल्म की हाइलाइट हैं, वहीं ड्रामा और गानों ने फिल्म को कमजोर कर दिया। फिल्म में तीन गाने हैं, जो फिल्म की कहानी को और भी स्लो कर देते हैं। खासतौर पर, गाने ऐसे समय पर आते हैं
जब फिल्म की सीरियसनेस खत्म हो जाती है। जब एक बड़ा इमोशनल सीन चल रहा होता है, उसी वक्त एक रोमांटिक गाना डाल दिया जाता है, जिससे फिल्म का टोन पूरी तरह से गड़बड़ हो जाता है।
ड्रामा सीन भी इतने मजबूर और घिसे-पिटे लगते हैं कि दर्शकों को उनसे कोई कनेक्शन महसूस नहीं होता। फिल्म की स्क्रिप्ट में भी गहरी कमी है, जो कहानी को आगे बढ़ाने में अक्षम रही।
कहानी में लॉजिक की कमी और तेज़ी से बदलते घटनाक्रम
युद्रा फिल्म की एक और बड़ी कमजोरी है इसके घटनाक्रम का असंगत ढंग से बदलना। फिल्म में टाइम और स्पेस का कॉन्सेप्ट इतना डिस्टॉर्टेड है कि आपको यह समझने में भी मुश्किल होती है कि आखिर किरदार कहां से कहां जा रहे हैं।
एक सीन में दिखाया गया है कि हीरो को पकड़ लिया गया है और अब उसे मारा जाने वाला है। लेकिन अगले ही सीन में वह किसी और देश में पहुंच जाता है। यह पूरी तरह से लॉजिकल एरर है, जिसे फिल्म के मेकर्स ने नजरअंदाज कर दिया है।
इस तरह के तत्व फिल्म की विश्वसनीयता को और भी कमजोर कर देते हैं, और दर्शक इससे डिसकनेक्ट हो जाते हैं।
फिल्म के अंत में क्या मिलता है?
फिल्म के अंत में युद्रा अपने पिता के बदले को पूरा करता है और उन सभी गुंडों को मार देता है जो उसके पीछे थे। हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में फिल्म ने कुछ भी नया या रोचक पेश नहीं किया। फिल्म के ट्विस्ट और क्लाइमेक्स भी इतने प्रेडिक्टेबल हैं कि दर्शक पहले से ही जान जाते हैं कि आगे क्या होने वाला है।
निष्कर्ष: युद्रा क्यों देखनी चाहिए या नहीं?
युद्रा फिल्म एक औसत दर्जे की एक्शन फिल्म है, जिसमें कहानी और किरदारों का विकास बेहद कमजोर है। फिल्म का एक्शन जरूर प्रभावशाली है, लेकिन केवल एक्शन के लिए ही फिल्म देखना उचित नहीं है।
इस फिल्म को देखने के बाद यही सवाल उठता है कि क्या यह फिल्म समय और पैसा खर्च करने लायक थी? शायद नहीं।